बॉलीवुड के रंगीन और अराजक दशक, 1970 के दौर, जहाँ सपने फिल्मों की रीलों पर सजते थे और दिल टूटने पर गाने बनते थे, सुलक्षणा पंडित की कहानी सबसे दर्दनाक और अक्सर अनसुनी रह जाती है। वह कोई साधारण चेहरा नहीं थीं; बल्कि एक ऐसा उल्कापिंड थीं जो पल भर में चमकी और फिर अस्त हो गई। एक ऐसी अदाकारा जिसकी खूबसूरती स्वर्गिक थी और एक पार्श्वगायिका जिसकी आवाज़ सोने जैसी शुद्ध थी, और जिसने भारत के महान संगीतकारों से शास्त्रीय संगीत की तालीम ली थी। एक छोटे से शानदार दौर के लिए, वह सबकी पसंदीदा हीरोइन, सिनेमा के एक दिग्गज की मूसा, और हर जुबां पर छाई एक नाम थीं। मगर आज, उनकी कहानी एक सिसकती हुई धुन की तरह है जिसे बहुत कम लोग याद करते हैं – यह कहानी है एक जबरदस्त प्रतिभा, एक बहुत ही सार्वजनिक दिल टूटने और एक ऐसी खामोशी में चले जाने की, जो शोहरत और मोहब्बत की कीमत के बारे में बहुत कुछ कह जाती है।
सुलक्षणा पंडित को समझने के लिए, हमें एक ऐसी दुनिया में कदम रखना होगा जहाँ कला उनकी विरासत थी। 12 जुलाई, 1954 को जन्मी सुलक्षणा प्रतिष्ठित मंगेशकर परिवार का हिस्सा थीं, उनके लिए संगीत कोई करियर का विकल्प नहीं बल्कि सांसों में बसी एक चीज़ थी। उनकी माँ, पद्मिनी देवी, एक मशहूर शास्त्रीय गायिका थीं, और उनकी मौसा स्वर्गीय लता मंगेशकर थीं। उनकी बहन, जयश्री पंडित भी एक अभिनेत्री थीं। यह ताकतवर विरासत एक वरदान भी थी और एक अनदेखा बोझ भी। बचपन से ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उनकी कड़ी ट्रेनिंग हुई, और कला के क्षेत्र में आना कोई विकल्प नहीं, बल्कि समय की बात थी।
डेब्यू: एक स्टार का जन्म (और उसकी आवाज़ का)
फिल्मोंमें सुलक्षणा की एंट्री पार्श्वगायिका के तौर पर हुई, लंबे समय बाद वह कैमरे के सामने आईं। उनका पहला गाना फिल्म 'मेरे भैया' (1972) के लिए था, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 'लाखों में एक' (1971) फिल्म के कोमल गाने "चंदा ओ चंदा" से, जिसे संगीतबद्ध किया था उनके बहनोई और संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर ने। इस गाने ने एक कोमल, भावपूर्ण और बेहद तराशी हुई आवाज़ को सामने लाया – एक ऐसी आवाज़ जिसमें मंगेशकर परिवार की शुद्धता और भावनात्मक गहराई की छाप थी।
यही आवाज़ थी जिसने फिल्म इंडस्ट्री का ध्यान खींचा, लेकिन जल्द ही उनका चेहरा भी मशहूर होने वाला था। एक्टिंग में उनकी शुरुआत 'उपहार' (1971) से हुई, लेकिन राज खोसला की थ्रिलर फिल्म 'कच्चे धागे' (1973) में उनकी भूमिका ने उन्हें स्टार बना दिया। विनोद खन्ना और कबीर बेदी जैसे नए अभिनेताओं के सामने सोनी की जुझारू भूमिका में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। फिल्म हिट रही, और इसके गाने, खासकर कव्वाली "तुम्हें हम भूल जाएँ", बेहद मशहूर हुए। सुलक्षणा अब एक जाना-पहचाना नाम बन चुकी थीं।
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